सफलता की कहानी

“मूंगफली की उन्नत किस्म जी.जे. जी –32 से बढ़ा किसानों का आत्मविश्वास”

भारत को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कृषि विज्ञान केंद्र गोविंदनगर द्वारा किए जा रहे प्रयासों के सकारात्मक परिणाम अब ग्रामीण अंचलों में दिखाई देने लगे हैं। केंद्र द्वारा खरीफ वर्ष 2025 में फसल विविधिकरण के अंतर्गत अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन (Front Line Demonstration) के तहत नर्मदापुरम जिले के केसला एवं बनखेड़ी विकासखंड के चयनित ग्राम — दौड़ी, झुनकर, चनागढ़ और दहलवाड़ा में मूंगफली की उन्नत किस्म जी.जे. जी –32 का प्रदर्शन कराया गया।
केंद्र के प्रभारी डॉ. संजीव कुमार गर्ग ने बताया कि किसानों की रुचि एवं क्षेत्र की भूमि की उपयुक्तता एवं भौगोलिक स्थति को देखते हुए यह प्रदर्शन कार्यक्रम संचालित किया गया था। किसानों को उन्नत बीज, तकनीकी मार्गदर्शन तथा वैज्ञानिक सलाह उपलब्ध कराई गई। उन्होंने कहा कि मूंगफली की यह किस्म न केवल उच्च उत्पादकता देने वाली है, बल्कि कीट एवं रोग सहनशील भी है और इसके दानों में तेल की मात्रा भी अधिक पाई जाती है।
ग्राम झुनकर के किसान श्री सगन ने बताया कि “पहली बार मैंने कृषि विज्ञान केंद्र से मिली जी.जे. जी –32 किस्म लगाई थी। वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार बुवाई, सिंचाई एवं कीट नियंत्रण किया गया। परिणामस्वरूप मुझे अन्य फसलो की अपेक्षा लगभग 30 से 40 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त हुआ। दाने बड़े और एकसमान निकले जिससे बाजार में बेहतर मूल्य मिलेगा | इस फसल से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है और अगले वर्ष मैं अपने पूरे खेत में यही मूंगफली की फसल लगाने का विचार कर रहा हूँ।”
इसी तरह दौड़ी एवं चनागढ़ के किसानों ने भी बताया कि इस किस्म से उन्हें बेहतर उपज, पौधों में मजबूती और रोगों का कम प्रकोप देखने को मिला। खेतों में फसल की हरियाली और फलियों की भरपूरता देखकर आसपास के अन्य किसान भी प्रेरित हुए हैं।
डॉ. संजीव कुमार गर्ग ने कहा कि इस प्रदर्शन की सफलता से किसानों में तिलहन फसलों की ओर रुझान बढ़ा है। आने वाले वर्ष में मूंगफली की इस किस्म का रकबा क्षेत्र में निश्चित रूप से बढ़ेगा। उन्होंने बताया कि केंद्र निरंतर किसानों को उन्नत बीज, जैविक कीटनाशी, और नवीन तकनीकें उपलब्ध कराकर तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने हेतु कार्यरत है।
यह सफलता केवल एक किसान की नहीं, बल्कि वैज्ञानिक मार्गदर्शन और किसान परिश्रम के संगम की जीवंत मिसाल है।

सफलता की कहानी “32 स्क्वायर मीटर से 2000 स्क्वायर मीटर तक का प्रेरणादायी सफर” किसान – श्री नीलेश कुशवाहा, ग्राम – तिंदवाड़ा

कृषि में सफलता की कहानियाँ यह सिद्ध करती हैं कि अगर लगन और प्रयास सच्चे हों तो सीमित संसाधन भी सफलता की बड़ी मिसाल बन सकते हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायी कहानी है ग्राम तिंदवाड़ा के प्रगतिशील किसान श्री नीलेश कुशवाहा की, जिन्होंने अपनी मेहनत और सीखने की इच्छा से मात्र 32 स्क्वायर मीटर से नर्सरी उत्पादन शुरू किया और आज 2000 स्क्वायर मीटर क्षेत्र में सफल नर्सरी का संचालन कर रहे हैं।

श्री नीलेश कुशवाहा ने कृषि विज्ञान केंद्र, गोविंदनगर से आर्या परियोजना के अंतर्गत नर्सरी प्रबंधन पर प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें पौध उत्पादन की तकनीकी जानकारी, बीज उपचार, पौध संरक्षण, पौधों की देखरेख एवं विपणन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से मार्गदर्शन मिला।

प्रशिक्षण के उपरांत उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से 32 स्क्वायर मीटर सेडनेट यूनिट स्थापित की। प्रारंभिक स्तर पर उन्होंने सब्जियों और फूलों की नर्सरी तैयार कर बेचना शुरू किया। धीरे-धीरे उनके पौधों की गुणवत्ता और मेहनत से तैयार पौधों की मांग बढ़ने लगी।

अच्छी आमदनी एवं बढ़ती मांग को देखते हुए श्री नीलेश ने अपने प्रयासों को और आगे बढ़ाया। उन्होंने अपनी नर्सरी का क्षेत्रफल बढ़ाते हुए आज 2000 स्क्वायर मीटर का आधुनिक सेडनेट तैयार कर लिया है, जहाँ वे सब्जी, फूल, फल एवं सजावटी पौधों की नर्सरी तैयार कर रहे हैं।

उनकी इस नर्सरी से आज आसपास के अनेक किसान लाभान्वित हो रहे हैं। श्री नीलेश ने न केवल अपनी आमदनी में वृद्धि की है, बल्कि अन्य युवाओं के लिए भी एक प्रेरणा बन गए हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र, गोविंदनगर के वैज्ञानिकों के सतत मार्गदर्शन और श्री नीलेश की मेहनत ने यह साबित किया कि अगर सही दिशा और तकनीक मिल जाए तो कृषि के क्षेत्र में रोजगार और आत्मनिर्भरता दोनों संभव हैं।

🌱 श्री नीलेश कुशवाहा का संदेश:

“अगर आप सीखने और करने का मन बनाएं, तो छोटे से छोटा कदम भी बड़े बदलाव की शुरुआत बन सकता है।”